तुम तालाब सोखते हो
नदी पी जाते हो
आबाद करते हो वहाँ
अट्टालिकाएँ और
कूड़े के ढेर।
फिर किसी
स्वयंसेवी संस्था
या पर्यावरण समिति के
अध्यक्ष या सदस्य बन
अथवा चंद चाँदी देकर
महान बन
गमले में पौधे लगाकर
पर्यावरण दिवस पर
वृक्षारोपण कर
मुक्त हो जाते हो
नदियों की हत्या के भार से
तालाबों के बलात्कार से।
हर साल फोटो खिंचाते हुये
पौधे लगाते हो
और ढपोरशंखी भाषण दे
महात्मा बनते हो।
पर तुम्हारे लगाये पौधे
कभी वृक्ष नहीं बनते
या तो तुम उन्हें मार देते हो
या तुम्हारे पापी
आततायी हाथों का स्पर्श पा
वे आत्महत्या कर लेते हैं।
पर वे वृक्ष नहीं बनते
और हर वर्ष उनके चितास्थान पर
तुम बेशर्म हँसी हँसते हुये
वृक्ष लगाते हो
पर्यावरण दिवस मनाते हो।
स्वयं को स्रष्टा समझने का
दम्भ भरते हो।
आत्मश्लाघा से ग्रस्त रहते हो।
पर ठहरो!
अधिक मत फूलो
आज नहीं तो कल
प्रकृति तुम्हारा
प्रतिकार करेगी।
तुम्हारी करनी और करतूत का
तुम्हारी आने वाली पीढ़ी
मूल धन और ब्याज भरेगी।।
यह धरती है
यह नदी है
इसने निमिष में
अट्टालिकाओं को बर्बाद होते देखा है।
मानवता को
अवसाद ढोते देखा है।।
नदी पी जाते हो
आबाद करते हो वहाँ
अट्टालिकाएँ और
कूड़े के ढेर।
फिर किसी
स्वयंसेवी संस्था
या पर्यावरण समिति के
अध्यक्ष या सदस्य बन
अथवा चंद चाँदी देकर
महान बन
गमले में पौधे लगाकर
पर्यावरण दिवस पर
वृक्षारोपण कर
मुक्त हो जाते हो
नदियों की हत्या के भार से
तालाबों के बलात्कार से।
हर साल फोटो खिंचाते हुये
पौधे लगाते हो
और ढपोरशंखी भाषण दे
महात्मा बनते हो।
पर तुम्हारे लगाये पौधे
कभी वृक्ष नहीं बनते
या तो तुम उन्हें मार देते हो
या तुम्हारे पापी
आततायी हाथों का स्पर्श पा
वे आत्महत्या कर लेते हैं।
पर वे वृक्ष नहीं बनते
और हर वर्ष उनके चितास्थान पर
तुम बेशर्म हँसी हँसते हुये
वृक्ष लगाते हो
पर्यावरण दिवस मनाते हो।
स्वयं को स्रष्टा समझने का
दम्भ भरते हो।
आत्मश्लाघा से ग्रस्त रहते हो।
पर ठहरो!
अधिक मत फूलो
आज नहीं तो कल
प्रकृति तुम्हारा
प्रतिकार करेगी।
तुम्हारी करनी और करतूत का
तुम्हारी आने वाली पीढ़ी
मूल धन और ब्याज भरेगी।।
यह धरती है
यह नदी है
इसने निमिष में
अट्टालिकाओं को बर्बाद होते देखा है।
मानवता को
अवसाद ढोते देखा है।।
No comments:
Post a Comment