Monday, June 25, 2018

वन में खिलने वाले

उन फूलों को क्या बोलोगे
मरु में भी जो खिलते हैं?
कैसी उनकी शक्ति-परीक्षा
जो पत्थर पर भी उगते हैं?
पत्थर पर उगने वालों की,
मरुथल में खिलने वालों की,
घोर ताप सहने वालों की,
बोलो क्या कोई तुलना है
गमले के संरक्षित पौधों से
धूपछाँव रक्षित पौधों से?
बीहड़ में वे स्वयमेव खड़े हैं
ये संरक्षण में हुये बड़े हैं।
आधारभूत अंतर दोनों में
पर दोनों सिर ताने खड़े हैं।
पर ये बीहड़ के स्वयंभू
किसी हाल में न तनिक झुकेंगे
ये क्रीतदास नहीं पालकों के
सदा सर्वदा अडिग रहेंगे।
गमलों-फुलवारियों के पौधे
सौन्दर्य - शर्त पर जीते हैं।
स्वामी की स्नेह दृष्टि हेतु
सदा आतुर-उत्सुक रहते हैं।
इनका यह पराश्रित जीवन
स्वाभिमान रहित हो रीता है।
असली जीवन तो वह है
जिसे निर्भय पुष्प वनों में जीता है।
@ममतात्रिपाठी

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