Monday, June 25, 2018

आसमान ताकती आँखें

आसमान ताकती आँखें
खो देती हैं तब ताकत
जब मौसम की मार
पड़ती असमय आकर
कभी वर्षा, कभी बाढ़
कभी सूखा, कभी अकाल
सामर्थ्य की थाह
लगा जाता है।
ताकतवर मनुष्य को
ताकत का पैमाना
बता जाता है।
सूख जाती है
खेतों में लगी हरियाली
डूब जाती है
पौधों की फुनगी
दूर्वा सूखकर
तिनका बन जाती है
सृष्टि जब
आह भरती है।
ताल-तलैया
नदी और पोखर
सूख जाते हैं
चिटक जाती है माटी
दरार उभर आती है।
दुनिया दुर्दिन हटाने में
सुदिन लाने में
जुट जाती है।
थमते हैं मनुष्य के
दम्भपूर्ण कदम
और वह फिर बनाने लगता है
प्रकृति से तारतम्य।।
@ममतात्रिपाठी

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