Monday, June 25, 2018

हम आलोक उपासक

हम चिर-आलोक उपासक
सूर्यकिरणों के संरक्षक
नव-ऊर्जा के नित-संवाहक
तनिक तिमिर देखकर ठिठक गये
तो प्रात न हो पायेगी
न यह वसुंधरा कभी
दिव्य प्रभाती गायेगी।
तिमिरों के उस पार चलें हम
पग में पारावार धरे हम।
तमिस्र परीक्षा का भारी है,
पर जगती का त्राण करें हम।।
निशाचरों का वास जहाँ है
वही पर मंगलगान करेंगे।
छोटी अञ्जुलि हो कितनी भी
स्वाहा का अभियान करेंगे।
स्वस्ति हेतु यदि हम स्वाहा होते
तो यह आहुति अमृत है।
यही सृष्टि का आदिभाव है
सभ्यता इसी से निःसृत है।
तो अमानिशा को देख बन्धुओं
ठिठक न मग में जाना है।
नव-संधानों की तूलिका लेकर
भारत भव्य बनाना है।
@ममतात्रिपाठी

No comments:

यथार्थ

रिश्ते-नाते, जान-पहचान औ हालचाल सब जुड़े टके से। टका नहीं यदि जेब में तो रहते सभी कटे-कटे से।। मधुमक्खी भी वहीं मँडराती मकरन्द जहाँ वह पाती ...