Thursday, December 26, 2019

प्रवाह

यह प्रवाह है उस सरिता का जो चट्टानों से लड़ती है निशिवासर आगे बढ़ती है भेदकर गिरि-वन को धरती शस्य श्यामल करती है।।

2 comments:

kuldeep thakur said...


जय मां हाटेशवरी.......

आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
29/12/2019 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......

अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
http s://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद

पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा said...

सुन्दर पंक्तियाँ

यथार्थ

रिश्ते-नाते, जान-पहचान औ हालचाल सब जुड़े टके से। टका नहीं यदि जेब में तो रहते सभी कटे-कटे से।। मधुमक्खी भी वहीं मँडराती मकरन्द जहाँ वह पाती ...