जंगल उजड़ते रहे,
उपवन उजड़ते रहे,
खेत और खलिहान उजड़ते रहे...
बस...
अट्टालिकाओं के शहर सजते रहे,
इस सजावट की चाहत में,
बुलबुले बनते और सिमटते रहे ।
उपवन उजड़ते रहे,
खेत और खलिहान उजड़ते रहे...
बस...
अट्टालिकाओं के शहर सजते रहे,
इस सजावट की चाहत में,
बुलबुले बनते और सिमटते रहे ।
6 comments:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज मंगलवार (24-12-13) को मंगलवारीय चर्चा 1471 --"सुधरेंगे बिगड़े हुए हाल" पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुंदर रचना |वृक्ष दिनों दिन कम होते जा रहे हैं |हमे पर्यावरण संतुलन हेतु वृक्षारोपण की अत्यंत आवश्यकता हैं ,जरूरत हैं की हर व्यक्ति अपने जन्मदिन के मौके पर एक पेड़ अवश्य लगाये |
www.drakyadav.blogspot.in
सुंदर रचना |वृक्ष दिनों दिन कम होते जा रहे हैं |हमे पर्यावरण संतुलन हेतु वृक्षारोपण की अत्यंत आवश्यकता हैं ,जरूरत हैं की हर व्यक्ति अपने जन्मदिन के मौके पर एक पेड़ अवश्य लगाये |
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सुंदर रचना |वृक्ष दिनों दिन कम होते जा रहे हैं |हमे पर्यावरण संतुलन हेतु वृक्षारोपण की अत्यंत आवश्यकता हैं ,जरूरत हैं की हर व्यक्ति अपने जन्मदिन के मौके पर एक पेड़ अवश्य लगाये |
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