आलोचना का स्वर मुखर है,
दिवस मेँ सूरज प्रखर है।
अरुण की सप्तवर्णी रश्मियाँ सजाये।
सफलता का पहला प्रहर है।।
रिश्ते-नाते, जान-पहचान औ हालचाल सब जुड़े टके से। टका नहीं यदि जेब में तो रहते सभी कटे-कटे से।। मधुमक्खी भी वहीं मँडराती मकरन्द जहाँ वह पाती ...
3 comments:
बढ़िया लिखा है
खूबसूरत अभिव्यक्ति...
वाह और अब सफलता का सूरज प्रखर ही होता जायेगा।
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