साभार: Google |
सूखा ताल
चिकनी माटी में
भयंकर फटी बिवाईं से
भयंकर दरार
उसी के बीच फँसा
तड़पकर मर गयी
सूखकर काँटा हो गयी
ताल की स्निग्ध
मछली का कंकाल
सूखकर खर हो गयीं
चंद घासों का गुच्छ
और एक मरियल सा बगुला
ध्यान से भटका हुआ
कभी ताल की तलहटी के
चिटकन में पानी तलाशता हुआ
कभी माटी-मछली की गति पर
हैरान होता हुआ
बेचारा मरियल सा बगुला।
....... ये दृश्य हमारी संवेदना को
खोजी पिपासा को
और उपभोक्तावादी होकर भी
मानवतावादी होने के ढोंग को
नये तथाकथित ढोंगी
संवेदनशील सौन्दर्य-संवेदना
के साथ
उजागर करता है
और यह भी तमाचा मारता है कि
ताल को किसने पिया है
मछली का ये हाल किसने किया है।
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