Thursday, November 23, 2017

शीत का भिनसार

शीत का भिनसार
पेड़-फूल-पत्ती
सब ओढ़े तुषार। 
बूँद-बूँद का व्यवस्थित
आकार-प्रकार
बूँद में सजा संसार
शीत का भिनसार।
रजत बिन्दु सी शीत
बिम्ब-प्रतिबिम्ब बनाती
होत भिनसार चिरई
दिव्य प्रभाती गाती।। 
पारद सी भाषित
अभास्वर तुषार बिन्दु
स्वयं में सँजोये
अद्भुत संसार-सिंधु।।
धीरे-धीरे विहान होता
सूरज का क्षितिज पर
स्वर्णिम उत्थान होता।।
सूरज की हेममयी किरणें
रजत तुषार का आलिंगन करतीं 
दिवाकर की दिव्य रश्मियाँ 
तुषार के क्रीड़ांगन में उतरतीं।।
धीरे-धीरे चुपके से रविकिरणें 
तुषार का आलिंगन कर
उसकी आभा-प्रभा आत्मसात् करतीं।।
और फिर खिल उठता रंग
वृक्ष-फूल-पत्ती का
चल पड़ता है जीवन
जगत् का जगती का।। 

No comments:

यथार्थ

रिश्ते-नाते, जान-पहचान औ हालचाल सब जुड़े टके से। टका नहीं यदि जेब में तो रहते सभी कटे-कटे से।। मधुमक्खी भी वहीं मँडराती मकरन्द जहाँ वह पाती ...