शीत का भिनसार
पेड़-फूल-पत्ती
सब ओढ़े तुषार।
बूँद-बूँद का व्यवस्थित
आकार-प्रकार
बूँद में सजा संसार
शीत का भिनसार।
रजत बिन्दु सी शीत
बिम्ब-प्रतिबिम्ब बनाती
होत भिनसार चिरई
दिव्य प्रभाती गाती।।
पारद सी भाषित
अभास्वर तुषार बिन्दु
स्वयं में सँजोये
अद्भुत संसार-सिंधु।।
धीरे-धीरे विहान होता
सूरज का क्षितिज पर
स्वर्णिम उत्थान होता।।
सूरज की हेममयी किरणें
रजत तुषार का आलिंगन करतीं
दिवाकर की दिव्य रश्मियाँ
तुषार के क्रीड़ांगन में उतरतीं।।
धीरे-धीरे चुपके से रविकिरणें
तुषार का आलिंगन कर
उसकी आभा-प्रभा आत्मसात् करतीं।।
और फिर खिल उठता रंग
वृक्ष-फूल-पत्ती का
चल पड़ता है जीवन
जगत् का जगती का।।
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