कल तलक जो
एक-दूसरे को
दुश्मन बताते थे
दुश्मनी मंचों से जताते थे
परस्पर आरोपों - प्रत्यारोपों
की अन्त्याक्षरी खेलते थे
पानी पी पीकर
एक दूजे को कोसते थे
अरावली की पहाड़ियों में
स्वघोषित, आत्मश्लाघा से पीड़ित
बाघ बने फिरते थे
साँप-छछूँदर का
खेल खेलते थे
आज भुला दिये हैं
उन्होंने सारे मतभेद
अब उनमें गजब की यारी है
क्योंकि सब पर परिषद् भारी है।।
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