Tuesday, November 21, 2017

बेखौफ बचपन

बेखौफ होता है बचपन
तीन-पाँच से मुक्त होता है
बचपन का हर काम
सात स्वरों से युक्त होता है।
छोटी सी होती हैं अभिलाषायें
छोटी सी इच्छाएं होती हैं।
कागज की एक नाव के लिए
आँखें घंटों रोती हैं।
बचपन में पाप पाप लगता है
अपराध भारी दिखता है
बचपन को सही रास्ते दिखते हैं
बचपन उनपर ही चलता है।
छोटी सी भूल में
बचपन में बड़ा पछतावा होता है
छोटी सी बात को बचपन
बड़ी बनाकर सोचता है।
बचपन में माटी के घरौंदे
राजमहल से कम नहीं लगते
कुछ पत्तियाँ फल फूल काँटे
सुंदर आभूषण से दिखते।
बचपन सीख रहा होता है
क्रोध गुस्से नाराजगी को
बचपन खोज रहा होता है
सभी में एक बचपन सी ताजगी को।
बचपन में राजा रानी की कहानियाँ
खूब लुभाती हैं मन को।
बचपन इन कहानियों में रम जाता है
और इन्हीं सा समझता है जीवन को।
बचपन में किसी परी के बाल
सच में सोने से लगते हैं।
बचपन में मछलियाँ सच में
अतुल वरदान देती हैं।
बचपन में कहानियों के जौ
वापस लौटने पर
सोने के हो जाते हैं
बचपन में शंख से 
सारे वरदान मिल जाते हैं।
बचपन में बाग में पेड़ पर चढ़ा 
हर व्यक्ति लकड़हारा लगता है।
बचपन वरदान देने वाले की
प्रतीक्षा करता है।
बचपन भरा होता है
उमंगों से तरंगो से
बचपन भरा होता है 
जीवन के असल रंगों से।
कब इसे दुनियादारी का
काला रंग पोत जाता है
इसका अहसास भी नहीं होता
और भोला बचपन
कुटिल जवानी और 
कुरूप वृद्धावस्था प्राप्त करता है।
पर बचपन का राग मंद नहीं होता
बस व्यक्ति उसे बंद करने की
कोशिश करता है।
सब जीना चाहते हैं उसे
पर व्यवस्थाएं और उत्तरदायित्व
उसे जीने नहीं देते। 
फिर से बच्चा बनने नहीं देते।
बच्चा हृदय में कैद हो
झाँक भी नहीं पाता
जालिम दुनिया की असलियत
ताक भी नहीं पाता

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