स्वस्ति के लिये
स्वाहा का स्वर
उठाना पड़ता है
आचमन कर
हव्य बन
हुताशन में आसन
जमाना पड़ता है।
माना ये
मिट जाना है
स्वयं को मिटाना है
पर अर्चि के तेज हेतु
कभी-कभी
मिट जाना पड़ता है।
हम अब
हवन के लिए
औरों का
आवाहन कर नहीं सकते
अतः
स्वयं ही
हवन, हव्य, समिधा
ऋत्विक्
होता-उद्गाता-अध्वर्यु-ब्रह्मा बन
हवन बन जाना पड़ता है।
@ममतात्रिपाठी
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