वह जीवन का प्रकाश-पुञ्ज
तुंग शिखर पर भाषित है।
जीवन का कण-कण क्षण-क्षण
उस तेजपुञ्ज हित अर्पित है।
वह तेजपुञ्ज है, वह ज्वाला है
चलने की प्रेरणा वह देती
श्रान्त क्लान्त जो हुये डगर में
पुनः ऊर्जस्वित वह करती।
वह आशा है वह श्रद्धा है
वह है मन में संचरित विश्वास
वही गति है वह प्रगति है
वही भास्वर शुक्ल प्रकाश।।
उन्नति उसकी सहचरी है
ऊर्जा उसकी प्रिय सखी है
मनुष्य का वह विश्वास अविचल
विजयरथ का सारथी है।
वह तेजपुञ्ज वह प्रेरणाप्रकाश
वह अन्तस् की मुखरित रागिनी
वह मनुज का अतुलित विश्वास
वह आशालता संजीवनी।।
किसी ने कहा अमृत उसे
किसी ने नाभि कस्तूरी।
वह सुगन्धि बड़ी विस्मयकारी
जो अभ्यंतर में उमड़ी - घुमड़ी।।
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