अम्बर अम्बर में सोता सूरज
बना चाँद को द्वारपाल।
निविड़ निशीथ सा शान्त बना है
अम्बुद-अम्बुधि सा उत्ताल।।
तारागण प्रहरी है सारे
अनुशासन से भरे हुये।
धरती का प्राण है सूरज
उसका रूप तनिक सा धरे हुये।।
उनकी टिमटिम आशा है
सूरज के उगने की।
टिमटिम करते रहे प्रतीक्षा
धरती के जगने की।।
सूरज जब सोकर उठने लगता
भोर का तारा मार्ग दिखाता
अरुण समीप लाकर सूरज को
दपे पाँव निज घर लौट जाता।।
हाथ पकड़ सूरज को
सप्तअश्वमय रथ में बैठाकर
अरुण बनता सारथी
जगाता जग को आलोक दिखाकर।।
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