Monday, March 19, 2018

अन्तस् की भाषा

जब अक्षरों से गढ़ी
  स्वरों से उतरी
कंठ की आर्द्रता से तर
शब्दों के अनुवाद में
भाव नहीं उतर पाते
पूरा रंग नहीं निखर पाता
एकांश अधूरा रह जाता
तब भला
हृदय की भाषा और भाव
जिसमें निहित मूल स्वभाव
कैसे अनूदित हो पाते हैं
हृदय से हृदय के संवाद में
भाव से शब्द के अनुवाद में
कुछ तार अनछुये रह जाते हैं
कुछ अर्थ अधूरे रह जाते हैं
जब भाषा का शत-प्रतिशत
अनुवाद नहीं हो सकता।
तो भला क्या भावों
शत प्रतिशत संवाद होता है?
क्या समस्त भाव शब्दों में उतरता है?
क्या वैखरी से निकलकर शब्द
कर्ण गुहा में वही रूप धरता है
जिस रूप में वह कंठ से निकलता है
जिह्वा पर तैरता है
वायु को माध्यम बनाता है
कर्ण-विवर में प्रवेश करता है।
@ममतात्रिपाठी

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