Monday, March 19, 2018

ये ईर्ष्या क्यों?

कुछ पौधों को लहलहाते देखकर
नव-पल्लवों को कर खोलते देखकर
तुम आश्चर्यमिश्रित ईर्ष्या से क्यों भर जाते हो?
तुम उनकी प्रसन्नता क्यों नहीं स्वीकार पाते हो?
क्या तुम्हें पता है
कि किस माली के करों ने
उस पौधे को रोपा है
स्नेह-जल से सींचा है
धूप-धूल और जलप्लावन में
जलने-बहने से बचाया है।
क्या तुम्हें पता है कि
उस पौधे के पल्लवों के
ताम्रवर्ण का आधार क्या है
किसने अपना जीवन होम कर
उसे आधार दिया है।
किसकी कल्पना है कि
पौधे ने ये शोभायमान आकार लिया है
किसने उचित वायु-जलद्वारा
इस पौधे को पुष्पन - पल्लवन-विहँसन का
संस्कार दिया है?
नहीं जानते तो
ईर्ष्या मत करो
ईर्ष्या से मत भरो
सोचो और तुम भी
शीत को सहो
धूप में चलो
अपना मार्ग बनाओ
तपो और कुंदन से निखरो
बस दूसरे पौधों को देखकर
मत जलो
ऐसे बनो कि
तुम्हारी भी लहलहाती पत्तियाँ हों
और तुम भी प्रतिद्वंद्वियों के
आँख में गड़ो और अखरो।
@ममतात्रिपाठी

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