गिरा गिरी तो तुम गिरे,
विवेक-बुद्धि भ्रष्ट हुयी।
स्वर्ण-सुधा की चाह में
शेष प्रतिष्ठा नष्ट हुयी।।
वाणी की उचित गरिमा
धारते हुये चलो।
शब्द-शब्द, वाक्य-वाक्य
सम्हालते हुये चलो।
@ममतात्रिपाठी
रिश्ते-नाते, जान-पहचान औ हालचाल सब जुड़े टके से। टका नहीं यदि जेब में तो रहते सभी कटे-कटे से।। मधुमक्खी भी वहीं मँडराती मकरन्द जहाँ वह पाती ...
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