मैं तलहटी की दूब हूँ
ताल का शैवाल भी
हिमालय का देवदारु
संगीत और ताल भी
हमारी थाप कभी
कम नहीं होती
हमारी धाक कभी
क्षीण नहीं होती
हम जहाँ रहे वहाँ
खोज लेते हैं
अपनी सार्थकता।
हम ही हैं
जो दूर करते हैं
निर्जन ग्रहों की नीरवता।।
क्योंकि हम
आदिसृष्टि हैं
और हैं आदिस्रष्टा।।
@ममतात्रिपाठी
ताल का शैवाल भी
हिमालय का देवदारु
संगीत और ताल भी
हमारी थाप कभी
कम नहीं होती
हमारी धाक कभी
क्षीण नहीं होती
हम जहाँ रहे वहाँ
खोज लेते हैं
अपनी सार्थकता।
हम ही हैं
जो दूर करते हैं
निर्जन ग्रहों की नीरवता।।
क्योंकि हम
आदिसृष्टि हैं
और हैं आदिस्रष्टा।।
@ममतात्रिपाठी
No comments:
Post a Comment