Saturday, March 10, 2018

तलहटी की दूब

मैं तलहटी की दूब हूँ
ताल का शैवाल भी
हिमालय का देवदारु
संगीत और ताल भी
हमारी थाप कभी
कम नहीं होती
हमारी धाक कभी
क्षीण नहीं होती
हम जहाँ रहे वहाँ
खोज लेते हैं
अपनी सार्थकता।
हम ही हैं
जो दूर करते हैं
निर्जन ग्रहों की नीरवता।।
क्योंकि हम
आदिसृष्टि हैं
और हैं आदिस्रष्टा।।
@ममतात्रिपाठी

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