Wednesday, March 21, 2018

तने को विस्तार दो

तने रहना है तो
तना सशक्त करो
तने में शक्ति भरो
तने का वितान तानो
समन्वय की शक्ति जानो।
तनना नहीं जानती
तना सशक्त नहीं बनाती
इसलिये लतायें
नहीं तनती।
मेरुरज्जु की की शक्ति
जाग्रत कर खड़ी नहीं होतीं
आजीवन आश्रय लेतीं
सहारा खोजतीं
विस्तार पातीं

दूर्वा
तनना जानतीं है
तना बनाती है
पर तने का
विस्तार नहीं करती
तने का विस्तृत
आकार नहीं करती
इसलिये दूर्वा
भूमि से तनिक उठ
तनी रहती है
अपने मेरुदंड पर
खड़ी रहती है
इस विश्वास के साथ
कि कोई उसका उच्छेद
नहीं कर सकता
कोई उनकी एकता का
विच्छेद नहीं कर सकता।
यह सत्य है इसलिए
प्राकृतिक आपदाओं में भी
दूर्वा तनी रहती है
स्थिर बनी रहती है
दुर्निवार रहती है।
बाँस भी
तनकर खड़ा होता है
ऊँचा और तना होता है
एक-दूसरे से बँधा होता है
मेरुदंड भी होता है
लचक भी
पर वह आँधियों में
भूमि पर पड़ा होता है
कई बार समूह सहित
जड़ से उखड़ा होता है
भूमि से उजड़ा होता है।
क्योंकि वह समन्वय जानता है
साथ रहना जानता है
पर स्व-का विस्तार करना
नहीं जानता
अपने निज तने का
प्रसार करना नहीं जानता
इसलिये हवा से हार जाता है
आपदाओं की मार खाता है।
इसलिये तुम तनों
तना का विस्तार करो
शाखाओं का प्रसार करो
मेरुदंड मजबूत करो
समन्वय की सीख धरो
सबको साथ ले चलो
असंख्य का आश्रय बनो
तुम तनों
वट और अश्वत बनों
हर परिस्थिति में यथावत् रहो।
उखड़कर भी स्थिर रहो
उजड़कर फिर उगो
अपनी भूमि पर अटल रहो
अपने पर्णों से
अपने अस्तित्व का भान
कराते रहो
सबका आश्रय बनते हुये
अपना मार्ग स्वयं बनाते रहो
तना सशक्त करते रहो
समन्वय की दृष्टि के साथ
एक्यभाव ले
तनते रहो।

1 comment:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (23-03-2017) को "तने को विस्तार दो" (चर्चा अंक-2918) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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