Monday, June 25, 2018

आकाश निहारो तुम

तुम अपनी इन आँखों में
भावों का कई पड़ाव लिये
घूम रहे हो।
फिर यह सूनापन क्यों
जो क्षितिज को निर्निमेष
घूर रहे हो?
भावों की एक तरंग
लाओ तुम
शून्य हो
क्षितिज पर
टकटकी बाँधे नयनों को
शिखर पर टिकाओ तुम।
क्षितिज से अंतरिक्ष
शून्य से शिखर
के मार्ग में
मिलेंगे बहुत से भाव
उन उदात्त भावों को
नयनों में बसाओ तुम
हृदय में उतारो तुम
मानस में धारो तुम
क्षितिज से ऊपर उठ
आकाश निहारो तुम।।
@ममतात्रिपाठी

No comments:

यथार्थ

रिश्ते-नाते, जान-पहचान औ हालचाल सब जुड़े टके से। टका नहीं यदि जेब में तो रहते सभी कटे-कटे से।। मधुमक्खी भी वहीं मँडराती मकरन्द जहाँ वह पाती ...