तुम अपनी इन आँखों में
भावों का कई पड़ाव लिये
घूम रहे हो।
फिर यह सूनापन क्यों
जो क्षितिज को निर्निमेष
घूर रहे हो?
भावों की एक तरंग
लाओ तुम
शून्य हो
क्षितिज पर
टकटकी बाँधे नयनों को
शिखर पर टिकाओ तुम।
क्षितिज से अंतरिक्ष
शून्य से शिखर
के मार्ग में
मिलेंगे बहुत से भाव
उन उदात्त भावों को
नयनों में बसाओ तुम
हृदय में उतारो तुम
मानस में धारो तुम
क्षितिज से ऊपर उठ
आकाश निहारो तुम।।
@ममतात्रिपाठी
भावों का कई पड़ाव लिये
घूम रहे हो।
फिर यह सूनापन क्यों
जो क्षितिज को निर्निमेष
घूर रहे हो?
भावों की एक तरंग
लाओ तुम
शून्य हो
क्षितिज पर
टकटकी बाँधे नयनों को
शिखर पर टिकाओ तुम।
क्षितिज से अंतरिक्ष
शून्य से शिखर
के मार्ग में
मिलेंगे बहुत से भाव
उन उदात्त भावों को
नयनों में बसाओ तुम
हृदय में उतारो तुम
मानस में धारो तुम
क्षितिज से ऊपर उठ
आकाश निहारो तुम।।
@ममतात्रिपाठी
No comments:
Post a Comment