Monday, June 25, 2018

नाप लो नभ

नाप लो नभ का हर कोण
पर क्षितिज वहाँ भी है।
हर सूरज अपना क्षितिज जानता है।
अपने उगने की परिधि जानता है।
इसलिये हरदिन उगता है
असीम विस्तार पाता है।
दिवसावसान पर क्षितिज में
सिमट जाता है।
अस्त होकर भी उदित होता है।

1 comment:

Anonymous said...

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