नाप लो नभ का हर कोण
पर क्षितिज वहाँ भी है।
हर सूरज अपना क्षितिज जानता है।
अपने उगने की परिधि जानता है।
इसलिये हरदिन उगता है
असीम विस्तार पाता है।
दिवसावसान पर क्षितिज में
सिमट जाता है।
अस्त होकर भी उदित होता है।
पर क्षितिज वहाँ भी है।
हर सूरज अपना क्षितिज जानता है।
अपने उगने की परिधि जानता है।
इसलिये हरदिन उगता है
असीम विस्तार पाता है।
दिवसावसान पर क्षितिज में
सिमट जाता है।
अस्त होकर भी उदित होता है।
1 comment:
प्रेरक प्रस्तुति
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