वास्तविकता
हरियाली के बीच
पहाड़ में बहती
किसी नदी के
सुंदर चित्र सी
सदा सुंदर नहीं होती।
वास्तविकता
मूँगे की चट्टानों के
भव्य चित्रों सी
रंगबिरंगी भी
नहीं होती।
अपितु वह
इन्द्रधनुष सी होती है
सात रंग दिखाती है
पर दर्शन उसका
भयाक्रांत कर जाता है।
वास्तविकता
किसी पहाड़ के
पिछले पाट की भाँति
रंगहीन और
बंजर भी होती है।
वास्तविकता केवल
सघन वनों की हरियाली
चीरती लम्बी काली
सड़क नहीं होती
वह कंकरीला पथरीला
भाबर भी होती है।
@ममतात्रिपाठी
1 comment:
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 14 एप्रिल 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
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