Tuesday, February 18, 2014

एक लौ...एक आस

गहन निशा है
तिथि अमावस
न सूझता कुछ
बेबस अन्तस् ॥
पर है एक टकटकी
एक आस
जीवन की लौ
ज्योति की लकीर
बदल देगी तकदीर
सुबह की लाली
लिखेगी नयी गाथा
उस ऊर्जा में खो जायेगा
जीवन का अमावस
गहन निशा
और तिरोहित होगी

सारी व्यथा ॥

3 comments:

प्रतिभा सक्सेना said...

प्रकृति के चक्र हैं ,
होगी सुबह फिर से
नया सूरज तुम्हारी राह में
किरणें बिछा देगा ...

संजय भास्‍कर said...

बहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति...!!!

प्रेम सरोवर said...

यथार्थ से परिचय कराता आपका यह आलेख बहुत ही अच्छा लगा।बहुत ही सुदर अभिव्यक्ति। मेरे नए पोस्ट Dreams also have life पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।

यथार्थ

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