Wednesday, November 22, 2017

स्कूल जाते बच्चे

होमवर्क से लदे
नंबरों के कमाई में लगे
थकी चाल लिये
उल्लास दूर किये
खुशी जेब में बंद कर
मशीनी पुर्जे बने
स्कूल जाते बच्चे 
अपेक्षाओं में पिसते
नन्हीं उम्र में 
बड़ी परीक्षा देते
नंबरों को गिनते
नंबर रह जाते
स्कूल जाते बच्चे। 
मूक रहकर 
मूक वेदना सहते
बोलने से पहले
शब्द पी जाते
खेलने से पहले
सहम से जाते
 स्कूल जाते बच्चे 
बचपन के तराजू का
हर बाँट खोखला
उसी खोखलेपन से
जिंदगी देखते 
जिंदगी जीते
और एक रिक्ति लिये
आगे बढ़ते
स्कूल जाते बच्चे 
बालसुलभ 
इच्छाओं को मारते
इच्छाओं का 
कंकाल बटोरते
और हृदय में 
मरी हुयी इच्छाओं के
कंकाल का ढेर
लगाते बच्चे
स्कूल जाते बच्चे। 
@ममतात्रिपाठी

1 comment:

पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा said...

इच्छाओं को मारते, इच्छाओं का कंकाल बटोरते और हृदय में मरी हुयी इच्छाओं के कंकाल का ढेर लगाते बच्चे स्कूल जाते बच्चे।
बिल्कुल्सही लिखा है आपने। बेहद संवेदनशील रचना।

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