जब कभी मेरा मन
उदासी के सागर की
गहराईयो में
खोने लगता है
जब वो अपनी कश्ती सहित
मँझधार में
डूबने लगता है
तब...
तब...
मुझे याद आती हैं
गीता की पंक्तियाँ
श्रीकृष्ण के उपदेश
और मेरे मन को
मिलता है
अपूर्व सम्बल
अपूर्व आत्मविश्वास
अपूर्व आशा का संसार
मेरा मन एक नई
स्फूर्ति के साथ
मँझधार से निकलने की
युक्ति सोचने लगता है
धीरे-धीरे मेरा मन और मस्तिष्क
अरुणाभा से भर उठता है
और उसमें जाग्रत होता है
एक तेज-पुञ्ज
जिसके प्रकाश से मैं,
मेरा अन्तस्
मेरा मानस
प्रकाशित हो उठता है
मेरे हृदय का अन्धकार
तिरोहित हो जाता है
और एक नये प्रकाश के साथ
एक नये विश्वास के साथ
मेरा मानस
मेरा अन्तस्
कार्य करने लगता है
अपने लक्ष्य-पथ पर बढने लगता है
तब मुझे "गीता की पंक्तियों" का
अर्थ समझ में आता है।
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यथार्थ
रिश्ते-नाते, जान-पहचान औ हालचाल सब जुड़े टके से। टका नहीं यदि जेब में तो रहते सभी कटे-कटे से।। मधुमक्खी भी वहीं मँडराती मकरन्द जहाँ वह पाती ...
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माँ-बाप का दुत्कारत हैं औ कूकुर-बिलार दुलारत हैं यहि मेर पुतवै पुरखन का नरक से तारत है ड्यौढ़ी दरकावत औ ढबरी बुतावत है देखौ कुलदीपकऊ ...
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खिड़कियों से झाँककर संसार निहारें हम ऐसा हमारे बड़ों ने संसार सौंपा है। अपनी भोगलिप्सा से पञ्चतत्त्व प्रदूषित कर हमें चुनौति...
1 comment:
इन्हीं कारणों से युगों-युगों से गीता अपनी प्रासंगिकता बनाये हुये है..
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