गुलमोहर
बदरंग मन में
रंग भरते गुलमोहर
निराश हृदय को
आस दिलाते गुलमोहर
खिलते रहो
उदासियों में भी
जीवन्त रहो
नीरवता में भी
रंग ही हैं
बोल बनते
रंग बिखेरते गुलमोहर।
गुलमोहर की
धूल-धूसरित
धूमिल पत्तियाँ
वर्षा में धुलकर
चटक होतीं
उत्थान-पतन
निर्माण - ध्वंस की
अमर गाथा गातीं
हारे मन को
आस बँधातीं
गुलमोहर की पत्तियाँ।
#ममतात्रिपाठी
7 comments:
सुन्दर सृजन
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 14 जून 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
धन्यवाद सुनील जी
धन्यवाद यशोदा जी
बहुत सुन्दर
सुन्दर काव्य
"हारे मन को
आस बँधातीं
गुलमोहर की पत्तियाँ।"
बहुत ख़ूब।
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