Monday, June 15, 2020

गुलमोहर


गुलमोहर
बदरंग मन में
रंग भरते गुलमोहर
निराश हृदय को
आस दिलाते गुलमोहर
खिलते रहो
उदासियों में भी
जीवन्त रहो
नीरवता में भी
रंग ही हैं
बोल बनते
रंग बिखेरते गुलमोहर।
गुलमोहर की
धूल-धूसरित
धूमिल पत्तियाँ 
वर्षा में धुलकर
चटक होतीं
उत्थान-पतन
निर्माण - ध्वंस की
अमर गाथा गातीं
हारे मन को
आस बँधातीं
गुलमोहर की पत्तियाँ।
#ममतात्रिपाठी


7 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

सुन्दर सृजन

yashoda Agrawal said...

आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 14 जून 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

Mamta Tripathi said...

धन्यवाद सुनील जी

Mamta Tripathi said...

धन्यवाद यशोदा जी

Onkar said...

बहुत सुन्दर

hindiguru said...

सुन्दर काव्य

मन्टू कुमार said...

"हारे मन को
आस बँधातीं
गुलमोहर की पत्तियाँ।"

बहुत ख़ूब।

यथार्थ

रिश्ते-नाते, जान-पहचान औ हालचाल सब जुड़े टके से। टका नहीं यदि जेब में तो रहते सभी कटे-कटे से।। मधुमक्खी भी वहीं मँडराती मकरन्द जहाँ वह पाती ...