वनों को वीरान बनाकर मरुस्थलों को बोया हमनें
ज़रूरतों को बढ़ाकर हरियाली को खोया हमनें
आज हरियाली टुकड़ों में छितरायी है
इसीलिये ज़मीन पर उदासी छायी है।
अभी हम सम्हले नही अपनी आदतों से
तो धरती वीरां होकर खिज़ा हो जायेगी
अनेक कहावतें खरी उतर जायेगीं औ
हमारी आदतों की आदतें हमें सतायेंगी।
ज़रूरी है कि सम्हले हम अभी तुरत
अपनी आदतों के गुलामी से बाज़ आयें
नही आने वाले पीढ़ियाँ लताड़ेगीं हमको
ज़रा यही सोचकर हमें लाज आये॥
Thursday, September 4, 2008
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यथार्थ
रिश्ते-नाते, जान-पहचान औ हालचाल सब जुड़े टके से। टका नहीं यदि जेब में तो रहते सभी कटे-कटे से।। मधुमक्खी भी वहीं मँडराती मकरन्द जहाँ वह पाती ...
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माँ-बाप का दुत्कारत हैं औ कूकुर-बिलार दुलारत हैं यहि मेर पुतवै पुरखन का नरक से तारत है ड्यौढ़ी दरकावत औ ढबरी बुतावत है देखौ कुलदीपकऊ ...
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रिश्ते-नाते, जान-पहचान औ हालचाल सब जुड़े टके से। टका नहीं यदि जेब में तो रहते सभी कटे-कटे से।। मधुमक्खी भी वहीं मँडराती मकरन्द जहाँ वह पाती ...
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खिड़कियों से झाँककर संसार निहारें हम ऐसा हमारे बड़ों ने संसार सौंपा है। अपनी भोगलिप्सा से पञ्चतत्त्व प्रदूषित कर हमें चुनौति...
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