आँगन के उस छोर पर
नीम के पेड़ तले
तुम झूला करती थी।
तुम्हारी हँसी-ठिठोली
सुन-सुन कर
पूरी टोली हँसा करती थी।
पर हमें नहीं पता था
कि अबकी सावन में
झूला तरस जायेगा
तुम्हे झुलाने को,
नीम तरस जायेगी
तुम्हें धूप से बचाने को।
प्रभु की लीला अपरम्पार है
उसपर नहीं हमारा अधिकार है,
अन्यथा........
जाकर कण-कण से तलाश लाते तुमको,
और तुम आती
इस सावन मे गीत गाती
सबको हँसाती।
Friday, July 31, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
यथार्थ
रिश्ते-नाते, जान-पहचान औ हालचाल सब जुड़े टके से। टका नहीं यदि जेब में तो रहते सभी कटे-कटे से।। मधुमक्खी भी वहीं मँडराती मकरन्द जहाँ वह पाती ...
-
माँ-बाप का दुत्कारत हैं औ कूकुर-बिलार दुलारत हैं यहि मेर पुतवै पुरखन का नरक से तारत है ड्यौढ़ी दरकावत औ ढबरी बुतावत है देखौ कुलदीपकऊ ...
-
रिश्ते-नाते, जान-पहचान औ हालचाल सब जुड़े टके से। टका नहीं यदि जेब में तो रहते सभी कटे-कटे से।। मधुमक्खी भी वहीं मँडराती मकरन्द जहाँ वह पाती ...
-
खिड़कियों से झाँककर संसार निहारें हम ऐसा हमारे बड़ों ने संसार सौंपा है। अपनी भोगलिप्सा से पञ्चतत्त्व प्रदूषित कर हमें चुनौति...
3 comments:
बहुत सुंदर रचना है ममता जी
बहुत सुन्दर...
Fantastic!!!
Post a Comment