Friday, July 31, 2009

और तुम आती

आँगन के उस छोर पर
नीम के पेड़ तले
तुम झूला करती थी।
तुम्हारी हँसी-ठिठोली
सुन-सुन कर
पूरी टोली हँसा करती थी।
पर हमें नहीं पता था
कि अबकी सावन में
झूला तरस जायेगा
तुम्हे झुलाने को,
नीम तरस जायेगी
तुम्हें धूप से बचाने को।
प्रभु की लीला अपरम्पार है
उसपर नहीं हमारा अधिकार है,
अन्यथा........
जाकर कण-कण से तलाश लाते तुमको,
और तुम आती
इस सावन मे गीत गाती
सबको हँसाती।

3 comments:

Rupesh said...

बहुत सुंदर रचना है ममता जी

Mukesh said...

बहुत सुन्दर...

Yashwant R. B. Mathur said...

Fantastic!!!

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