एक दिन दूत ने भगवान से कहा
कि हे भगवान!
तुम तो सर्वज्ञ हो,
सर्वशक्तिमान हो,
तीनो लोकों के ज्ञाता हो,
बताओ
इस समय पृथ्वीलोक की क्या दशा है?
दूत के इस प्रश्न पर
भगवान सोंच में पड़ गये
कुछ देर विचारकर बोले
हे दूतवर!
मुझे कुछ समय दीजिये,
कुछ दिनों की मोहलत दीजिये
मैंने बहुत दिनों से
पृथ्वी की हालत देखी नहीं है
बहुत दिनों से सर्वेक्षण भी नहीं किया है
पहले जाकर
देख आता हूँ
फिर आपके प्रश्न का उत्तर दूँगा।
भगवान का ये उत्तर सुनकर
दूत मन ही मन मुस्काया
और सोंचा के
जब भगवान ही
पृथ्वी के प्रति उदासीन हैं
तो पृथ्वी क्यों न डगमगाये
क्यों न उसकी व्यवस्थाएँ चरमरायें
और अन्ततः ध्वस्त हो जायें।
2 comments:
but still we can have our faith in that ultimate power who is caaled "EESHVAR" in our SANATAN tradition.... because he himself says...." YOGAKSHEMAM VAHAMYAHAM "
सोचने को मजबूर करती है कविता.
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