मैंने सुना था
उनके बचपन में
सायंकाल पेड़ों के झुरमुट में
कोयलें कूकती थीं।
गोधूलि बेला में
घंटियों की धुन के साथ
गोचरी से, गायें लौटती थीं।
दिया जलते ही,
गाँव की चौपालों में,
सभा बैठती थी।
होती थी बातें
देश-विदेश की,
अपने परिवेश की,
इतिहास की, भूगोल की,
लोक की परलोक की।
घरों के आँगन में,
गीत गाये जाते थे।
कभी बिरहा,कभी फाग,
कभी चैती,कभी कजरी,
कभी आल्हा-ऊदल के किस्से,
सुनाये जाते थे।।
चहँकती रहती थीं राते।
जन-जीवन में थीं,
अनगिनत रसमय बातें।
पर...............
हमारे लिये तो वे बातें
एक स्वप्न हैं,
एक गल्प हैं,
एक कल्पना हैं,
एक किवदन्ती हैं,
हम उन्हें जान तो सकते हैं
पढ़ भी सकते हैं,
पर महसूस नहीं कर सकते।
विचारात्मक धरातल से उन्हें,
अनुभूति में नहीं उतार सकते।
हमारा अनुभव तो वर्तमान है
और उनका अनुभव भूत है।
हमारी समस्या है कि
हम वर्तमान की तुला पर
भूत को कैसे तौलें?
उनकी भी समस्या है कि
वर्तमान के चकाचौंध में
अपने स्वर्णिम अतीत को
वे भला कैसे भूलें?
13 comments:
exact on generation gap...........
एक चिरन्तन द्वैध को अभिव्यक्त करती कविता ! सुन्दर !
शोभनम्....
समय चक्र आगे ही बढ़ता जाएगा। पीछे की तो बस यादें बचेंगी। कविता बेशक अच्छी है।
behtaren kavita ke liye aapko badhai mamtaji
very nice
ममता जी आप ने सही कहा पीछ वाली सरकारे भी कम नहीं ,लेकिन ट्रक ड्राईवर अशोशियन वाजपेयी की पूजा जरूर करता हे |
कसाब को बचाने की कवायद
http://jaishariram-man.blogspot.com/2010/12/blog-post_11.html
मन प्रसन्न हुअा. इस रचना रचना प्रस्तुती के लिये बधाई!
ittifaq se aapke blog tak aa agye
kai chintansheel lekh padhe kai kavitayen bhi padhi ..ek se ek sundar,bhaavpoorn ,tathyaparak or sarthak rachna,jitna padha usmein ye kavita bahut hi manmohak si lagii ....yakinan kabil-e-tariif .....daad hazir hai,........ kubool karen
"...हमारी समस्या है कि
हम वर्तमान की तुला पर भूत को कैसे तौलें?.."
शायद हम वास्तविकता के धरातल पर ऐसा चाहते भी नहीं.
बहुत अच्छा लगा आपका ब्लॉग...यथा नाम तथा गुण.
''अभिनव रचना'' ऐसे ही ज़ारी रखिये.
bahut hi sudnar kavita , man ko abhibhoot kar gayi
badhayi
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मेरी नयी कविता " तेरा नाम " पर आप का स्वागत है .
आपसे निवेदन है की इस अवश्य पढ़िए और अपने कमेन्ट से इसे अनुग्रहित करे.
"""" इस कविता का लिंक है ::::
http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/02/blog-post.html
विजय
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