
शक्तियाँ असीमित,
बस नेत्र हैं निमीलित,
निज पर विश्वास करें,
जीवन में सुवास भरें,
अन्तर्मन मुखरित हो,
क्लेश सब विगलित हो,
क्लान्ति-श्रान्ति त्यागें हम,
फिर एक बार जागें हम,
गहें पावन शिवाज्ञा।
करें हम प्रत्यभिज्ञा।।
मुख न कभी म्लान हो,
शक्ति का संचार हो,
लक्ष्य का संधान हो,
जीवनोत्थान हो,
हो सफल प्रतिज्ञा।
करें हम प्रत्यभिज्ञा॥
गरिमा का घट भरे,
रोर पनघट करे,
बटेर फिर रट करे,
कि एक नया विहान हो,
नीला वितान हो,
हो शिव की अनुज्ञा।
करें हम प्रत्यभिज्ञा॥
गौरेया का कलरव,
गायों की नूपुर रव,
नव उल्लास दे,
वधुओं की रुन्झुन
घर को उजास दे,
जगे हमारी प्रज्ञा।
करें हम प्रत्यभिज्ञा
22 comments:
जागरण के नव विहान का आह्वान करती बहुत ही सुन्दर,भावपूर्ण एवं प्रवाहमयी रचना .....
ओजपूर्ण शब्द हैं..... सुंदर आव्हान लिए है रचना .....
जागृति करती आशावादी सुन्दर रचना.
bavpoorn kavita. sadbhavna v shubhkamna se bhari hui.
बहुत ही सुन्दर ।
khubsurat shabdon main piroi gai ek
sunder rachna hetu abhaar....
सबकी प्रज्ञां जग जाय तो दुनिया में सुख/ शांति आ जाय. अच्छी रचना. बधाई स्वीकारें. अवनीश सिंह चौहान
बहुत ही सुन्दर आह्वान....
कविता के शब्द भाव प्रवाह ऐसे मनोरम हैं की प्रशंशा हेतु शब्द संधान कठिन लग रहा है...
बहुत ही सुन्दर लेखनी है आपकी..इसी तरह उत्कृष्ट रचती रहें...
अनुपम साहित्यिक छटा और भावनाओं से ओतप्रोत एक स्तरीय रचना ! ममता जी बहुत बहुत बधाई !
बहुत ही भावपूर्ण रचना!
प्रत्यभिज्ञा '' तत्त्वमसि '' की हो अगर, कुछ हो न हो.
उपनिषदीय तत्त्व निहित हैं. सुन्दर..
bahut hi prabhaavshaali dhang se likhi gayi kavita .. aapke shabdo ka chayan mujhe bahut accha laga, badhayi sweekar kare.
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मेरी नयी कविता " तेरा नाम " पर आप का स्वागत है .
आपसे निवेदन है की इस अवश्य पढ़िए और अपने कमेन्ट से इसे अनुग्रहित करे.
"""" इस कविता का लिंक है ::::
http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/02/blog-post.html
विजय
अच्छी शब्द सामर्थ्य से युक्त आपकी यह रचना अच्छी लगी ! सफल रहेंगी आप ! शुभकामनायें !
बहुत ही भावपूर्ण रचना!
बेहद खूबसूरत रचना...
आज पहली बार आई हूं मगर रचना बहुत पसंद आई। आगे भी पढ़ती रहूं इसलिए ब्लॉग फालो कर रही हूं..
आप भी जरूर आइए...
सुंदर रचना ममता जी होली की रंगविरंगी शुभकामनाएं और ढेरों बधाइयाँ |
Mamta ji bahut sundar likhi hai har panktee .
आप को रंगों के पर्व होली की बहुत बहुत शुभकामनायें ..
रंगों का ये उत्सव आप के जीवन में अपार खुशियों के रंग भर दे..
Bahut hi sundar rachna...
sunder abhivyakti badhaayee
संस्कृतनिष्ठ/तत्सम शब्दों से युक्त होने पर भी यह रचना कहीं से भी भावार्थ को बाधित नहीं करती। बहुतों का मानना है कि ऐसे शब्दों के प्रयोग से कविता/रचना की प्रवाहात्मकता बाधित हो जाती है, लेकिन यह रचना इस विचार को खारिज करती है।
इस सुंदर रचना के लिए पुनश्च धन्यवाद.
गरिमा का घट भरे,
रोर पनघट करे,
बटेर फिर रट करे,
कि एक नया विहान हो,
बहुत सुन्दर प्रस्तुति, करें हम प्रतिभिग्याँ ,ऊपर की पंक्तियाँ बहुत सुन्दर बन पड़ी है सुन्दर ब्लॉग -एक नए विहान की आशा में
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५
bahut hi sundar pratigya hai
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