Monday, February 21, 2011

करें हम प्रत्यभिज्ञा


शक्तियाँ असीमित,

बस नेत्र हैं निमीलित,

निज पर विश्वास करें,

जीवन में सुवास भरें,

अन्तर्मन मुखरित हो,

क्लेश सब विगलित हो,

क्लान्ति-श्रान्ति त्यागें हम,

फिर एक बार जागें हम,

गहें पावन शिवाज्ञा

करें हम प्रत्यभिज्ञा।।

मुख न कभी म्लान हो,

शक्ति का संचार हो,

लक्ष्य का संधान हो,

जीवनोत्थान हो,

हो सफल प्रतिज्ञा।

करें हम प्रत्यभिज्ञा॥

गरिमा का घट भरे,

रोर पनघट करे,

बटेर फिर रट करे,

कि एक नया विहान हो,

नीला वितान हो,

हो शिव की अनुज्ञा।

करें हम प्रत्यभिज्ञा॥

गौरेया का कलरव,

गायों की नूपुर रव,

नव उल्लास दे,

वधुओं की रुन्झुन

घर को उजास दे,

जगे हमारी प्रज्ञा।

करें हम प्रत्यभिज्ञा

22 comments:

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

जागरण के नव विहान का आह्वान करती बहुत ही सुन्दर,भावपूर्ण एवं प्रवाहमयी रचना .....

डॉ. मोनिका शर्मा said...

ओजपूर्ण शब्द हैं..... सुंदर आव्हान लिए है रचना .....

Kunwar Kusumesh said...

जागृति करती आशावादी सुन्दर रचना.

संतोष पाण्डेय said...

bavpoorn kavita. sadbhavna v shubhkamna se bhari hui.

सदा said...

बहुत ही सुन्‍दर ।

पी.एस .भाकुनी said...

khubsurat shabdon main piroi gai ek
sunder rachna hetu abhaar....

​अवनीश सिंह चौहान / Abnish Singh Chauhan said...

सबकी प्रज्ञां जग जाय तो दुनिया में सुख/ शांति आ जाय. अच्छी रचना. बधाई स्वीकारें. अवनीश सिंह चौहान

रंजना said...

बहुत ही सुन्दर आह्वान....

कविता के शब्द भाव प्रवाह ऐसे मनोरम हैं की प्रशंशा हेतु शब्द संधान कठिन लग रहा है...

बहुत ही सुन्दर लेखनी है आपकी..इसी तरह उत्कृष्ट रचती रहें...

आनंद said...

अनुपम साहित्यिक छटा और भावनाओं से ओतप्रोत एक स्तरीय रचना ! ममता जी बहुत बहुत बधाई !

'साहिल' said...

बहुत ही भावपूर्ण रचना!

Anonymous said...

प्रत्यभिज्ञा '' तत्त्वमसि '' की हो अगर, कुछ हो न हो.
उपनिषदीय तत्त्व निहित हैं. सुन्दर..

vijay kumar sappatti said...

bahut hi prabhaavshaali dhang se likhi gayi kavita .. aapke shabdo ka chayan mujhe bahut accha laga, badhayi sweekar kare.

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मेरी नयी कविता " तेरा नाम " पर आप का स्वागत है .
आपसे निवेदन है की इस अवश्य पढ़िए और अपने कमेन्ट से इसे अनुग्रहित करे.
"""" इस कविता का लिंक है ::::
http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/02/blog-post.html
विजय

Satish Saxena said...

अच्छी शब्द सामर्थ्य से युक्त आपकी यह रचना अच्छी लगी ! सफल रहेंगी आप ! शुभकामनायें !

Sunil Kumar said...

बहुत ही भावपूर्ण रचना!

वीना श्रीवास्तव said...

बेहद खूबसूरत रचना...
आज पहली बार आई हूं मगर रचना बहुत पसंद आई। आगे भी पढ़ती रहूं इसलिए ब्लॉग फालो कर रही हूं..
आप भी जरूर आइए...

जयकृष्ण राय तुषार said...

सुंदर रचना ममता जी होली की रंगविरंगी शुभकामनाएं और ढेरों बधाइयाँ |

Shikha Kaushik said...

Mamta ji bahut sundar likhi hai har panktee .
आप को रंगों के पर्व होली की बहुत बहुत शुभकामनायें ..
रंगों का ये उत्सव आप के जीवन में अपार खुशियों के रंग भर दे..

Anonymous said...

Bahut hi sundar rachna...

gazalkbahane said...

sunder abhivyakti badhaayee

दिवाकर मणि said...

संस्कृतनिष्ठ/तत्सम शब्दों से युक्त होने पर भी यह रचना कहीं से भी भावार्थ को बाधित नहीं करती। बहुतों का मानना है कि ऐसे शब्दों के प्रयोग से कविता/रचना की प्रवाहात्मकता बाधित हो जाती है, लेकिन यह रचना इस विचार को खारिज करती है।

इस सुंदर रचना के लिए पुनश्च धन्यवाद.

Surendra shukla" Bhramar"5 said...

गरिमा का घट भरे,
रोर पनघट करे,
बटेर फिर रट करे,
कि एक नया विहान हो,
बहुत सुन्दर प्रस्तुति, करें हम प्रतिभिग्याँ ,ऊपर की पंक्तियाँ बहुत सुन्दर बन पड़ी है सुन्दर ब्लॉग -एक नए विहान की आशा में

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५

Mani Singh said...

bahut hi sundar pratigya hai

यथार्थ

रिश्ते-नाते, जान-पहचान औ हालचाल सब जुड़े टके से। टका नहीं यदि जेब में तो रहते सभी कटे-कटे से।। मधुमक्खी भी वहीं मँडराती मकरन्द जहाँ वह पाती ...