Monday, September 23, 2013

दीपक की एक लौ...

अन्धकार का नाश सदा ही
दीपक की एक लौ करती है ।
चीर-चीरकर तम का आँचल
विपुल विभा को वह भरती है ॥
महत्त्वपूर्ण है स्नेह उसे जो
नित निर्लिप्त सींचा करता ।
तम की छाती भेद सके जो
बैठा वही वेदिका रचता ॥

1 comment:

संतोष पाण्डेय said...

ज्ञान का दीप मन में जलता रहे.

यथार्थ

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