अन्धकार का नाश सदा ही
दीपक की एक लौ करती है ।
चीर-चीरकर तम का आँचल
विपुल विभा को वह भरती है ॥
महत्त्वपूर्ण है स्नेह उसे जो
नित निर्लिप्त सींचा करता ।
तम की छाती भेद सके जो
बैठा वही वेदिका रचता ॥
रिश्ते-नाते, जान-पहचान औ हालचाल सब जुड़े टके से। टका नहीं यदि जेब में तो रहते सभी कटे-कटे से।। मधुमक्खी भी वहीं मँडराती मकरन्द जहाँ वह पाती ...
1 comment:
ज्ञान का दीप मन में जलता रहे.
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