Monday, June 8, 2020

महिमा मोबाइल कै

कोठरी मा अँधेर
मुँह पर उँजेर है
ई सब कुछू नाहीं
मोबाइल कै खेल है
मोबाइल देखि कै
आँख चौंधियान ही
पलक झपकत ही
अँखिया निंदान ही
मुला मोबाइल कै
ई मोह नाहीं छूटत है।
मनई नींद का ढकेल कै
स्क्रीन ऊपर नीचे खसकावत
औ टुकुर-टुकुर ताकत है।।
ई नयी देन है
सभ्यता के बिकास कै
लकिन कब्बौ कब्बौ
लागत बड़ी आफत है।
कोरोना के काल मा
काल से डेरान सभै
अब पढ़ाई कै कक्षौ
मोबाइल मा लागत है।।
नीक-सूक डिबिया ई
सबका बाँधे हैं
राजा होंय रंक चाहै
सबका साधे है।
-ममता त्रिपाठी



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