गाढ़ा हो अन्धकार
दिया से काम न चले
तब सूर्य बनो तुम।
शत्रु धूर्त हो
साम से काम न बने तो
दण्ड का नया विधान धरो तुम।।
ध्यान रहे
पत्थर पर भी उग आने की
जिजीविषा है तुममें
भरतपुत्र हो
शत्रुञ्जय होने की
जिगीषा है तुममें।
दिया से काम न चले
तब सूर्य बनो तुम।
शत्रु धूर्त हो
साम से काम न बने तो
दण्ड का नया विधान धरो तुम।।
ध्यान रहे
पत्थर पर भी उग आने की
जिजीविषा है तुममें
भरतपुत्र हो
शत्रुञ्जय होने की
जिगीषा है तुममें।
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