एक विभूति है
एक प्रेममयी
विशिष्ट अनुभूति है।
दया, ममता की
वात्सल्य, करुणा की
स्नेहमयी मूर्ति है॥
हमारी तृप्ति में
बसी रहती है
उसकी तृप्ति।
उसके आँचल में ही
मिट जाती है
सारी क्लान्ति, श्रान्ति
बसती है वही शान्ति
और विश्रान्ति।
जाकर वही लौटती है
हमारे मुखकी
आभा एवं कान्ति॥
30 comments:
ममत्व को नमन -सुन्दर कविता
आपका स्नेह और अपनत्व भरा शुभकामना संबोधन हृदयस्पर्शी हैं ,मेरी कृतज्ञता भरी शुभकामनायें !
आपकी यह रचना किसी के comment की मोहताज नही है। धन्यवाद।
sundar kavita.bhavpoorn.shubhkamnayen.
......जाकर वही लौटती है
हमारे मुखकी
आभा एवं कान्ति॥
sunder abhivyakti.....
ममता जी,
ममता तो आपके नाम के साथ ही जुडा हुआ है तो भला माँ पर इतनी सुन्दर अभिव्यक्ति कैसे नहीं बनती!
आभार !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
माँ तो आख़िर माँ है! सुंदर रचना , शुभकामनायें..
सुन्दर अभिव्यक्ति .
माँ तो आख़िर माँ है| सुन्दर अभिव्यक्ति|
sundar rachna..
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बस इतना ही कि बहुत अच्छी है....नया वर्ष मुबारक हो...
हमारी तृप्ति में बसी रहती है उसकी तृप्ति।
उसके आँचल में ही मिट जाती है सारी क्लान्ति...
-सच कहा है आप ने.
अच्छी कविता.
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ ममता जी.
हमारी तृप्ति में बसी रहती है उसकी तृप्ति।
उसके आँचल में ही मिट जाती है सारी क्लान्ति...
-सच कहा है आप ने.
अच्छी कविता.
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ ममता जी.
ममता जी माँ पर लिखी रचना निःसंदेह सुन्दर एवं पावन है.
विशिष्ट अनुभूति है।
दया, ममता की
वात्सल्य, करुणा
- विजय तिवारी ' किसलय '
मकर संक्राति ,तिल संक्रांत ,ओणम,घुगुतिया , बिहू ,लोहड़ी ,पोंगल एवं पतंग पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं........
बहुत सुन्दर रचना..
वसंत पंचमी की ढेरो शुभकामनाए....
प्रस्तुत कविता सराहनीय है.
आशा है कि आप अपने जीवन के साथ साथ लेखन की विधा को भी नए सौपन प्रदान करती रहेंगी.
कहना तो पड़ेगा ब्लॉग पर आपकी निम्न टिप्पणी को पढ़कर आपके ब्लॉग तक पहुंच सका हूँ.
"ममता त्रिपाठी ने कहा…
खामोशी की बात ही कुछ और होती है..................................मौन कुछ न बोलकर भी बहुत कुछ बोलता है।...................
पर विडम्बना यही है कि आजकल के व्यस्त जीवन में व्यक्ति के पास एक मिनट रुककर, ठिठककर, ठहरकर किसी के मौन को, खामोशी को समझने, जानने एवं उसके विषय में सोचने का समय ही नहीं मिलता.....................................................अन्यथा क्या किसी के वृद्ध माता-पिता के मौन से बड़ा कई मौन होता है?..................नहीं.................................पर कितने ऐसी सन्तानें हैं जो अपने वृद्ध माता-पिता के मौन को समझकर, उनकी व्यथा, पीड़ा को जानकर उसको दूर करने का प्रयास करते हैं।"
उपरोक्त टिप्पणी आपके जिन्दा इंसान होने का प्रमाण है. आपकी संवेदनशीलता और समाज के सरोकारों के प्रति जिम्मेदार होने का जीता जगता प्रमाण है.
वृद्ध लोगों के लिए वर्तमान समय में बहुत-कुछ किया जाना अपेक्षित है. जिसमें आप जैसी शख्शीयतों की समाज में उपस्थिति आशा का संचार करती हैं.
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
सम्पादक (जयपुर से प्रकाशित हिंदी पाक्षिक-प्रेसपालिका) एवं
राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
0141-2222225 (between. 07 PM to 08 PM)
098285-02666
maan ke prem ko smarpit sunder kvita
--- sahityasurbhi.blogspot.com
बहुत सुन्दर रचना!
माता को नमन!
.
उसके आँचल में ही
मिट जाती है
सारी क्लान्ति, श्रान्ति...
इससे बड़ा सच और कोई नहीं है ।
बेहतरीन प्रस्तुति !
.
बहुत सुंदर कविता है ... ममता दी ....फोटो बहुत क्यूट है....
मनोभावों को खूबसूरती से पिरोया है। बधाई।
maa !ki mahtta ko ukerti bahut sundar abhivyakti.badhai.
बहुत सुंदर ममता....... वात्सल्य को खूब अलंकृत किया शब्दों से......
आपकी रचना मन में उतर गयी.....
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चैतन्य के ब्लॉग से जुड़ने के लिए आभार
सुंदर ...सहज ह्रदयस्पर्शी
vatsalyamayee maa shabdo me utar gayee...aur dil khush ho gaya...ab follow kar raha hoon, to barabar aana rahega..:)
ममत्व को नमन -सुन्दर कविता
acchhi kavitaa......
एक एक शब्द मनोभूमि पर उतर इसे तरल करता गया...
बहुत ही सुन्दर रचना...वाह !!!
भाव विभोर कर देने वाली कविता.
उसके आँचल में ही
मिट जाती है
सारी क्लान्ति, श्रान्ति
ममता जी यों तो आप ने देखा ही है की हम इस समाज के दर्द- व्यथा -पीड़ा -से कितने भरे हैं , मेरी कविताये तो इसीलिए अधिकतर आग ह्रदय में समेटे रहती हैं पर कभी कभी हम आप की रमणीय प्रकृति में , बचपन की बगिया में , कान्हा के वात्सल्य में आ कुछ पल बिता लेते हैं ,मन को न जाने इस देश में और कब ,कहाँ शांति मिल पाए इसलिए ,
बहुत सुन्दर आप की रचनाएँ ,मन को छू जाती हैं मन कहे तो अपना सुझाव व् समर्थन हमें भी दें
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५
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