Thursday, September 4, 2008

फ़रमान

साहबजी ने कुछ फ़रमान फ़रमाया है
उनके दूतों ने कहा है कि एक फतवा आया है
कही उसको तुम नज़र अन्दाज़ न कर बैठना
नही तुम्हारी शामत का अन्दाज़ा नही होगा
दूसरे दिन तुमसे कोई तकाज़ा नही होगा

2 comments:

Mukesh said...

बहुत अच्छी कविता है ।
धन्यवाद

mithileshwamankar said...

आपकी कविताये अच्छी और संवेदनशील है । पढ़कर कुछ नया पा जाने का अहसास हुआ । आपकी कविता-- जब मैं आने को कहती हूँ
तब.....तुम क्यों सहम जाते हो?-- में हल्की सी चुभन उठ ही जाती है कि कैसा भाग्य कि हम ऐसे समाज का अंग है जहाँ "वह आने को कहती है
तब.....लोग सहम जाते है" भगवान करे आपका ये ब्लोग पढ़कर किसी एक का भी ज़मीर जाग जाये ........ बस भगवान करे.....

यथार्थ

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