साहबजी ने कुछ फ़रमान फ़रमाया है
उनके दूतों ने कहा है कि एक फतवा आया है
कही उसको तुम नज़र अन्दाज़ न कर बैठना
नही तुम्हारी शामत का अन्दाज़ा नही होगा
दूसरे दिन तुमसे कोई तकाज़ा नही होगा
Thursday, September 4, 2008
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
यथार्थ
रिश्ते-नाते, जान-पहचान औ हालचाल सब जुड़े टके से। टका नहीं यदि जेब में तो रहते सभी कटे-कटे से।। मधुमक्खी भी वहीं मँडराती मकरन्द जहाँ वह पाती ...
-
माँ-बाप का दुत्कारत हैं औ कूकुर-बिलार दुलारत हैं यहि मेर पुतवै पुरखन का नरक से तारत है ड्यौढ़ी दरकावत औ ढबरी बुतावत है देखौ कुलदीपकऊ ...
-
गुलमोहर बदरंग मन में रंग भरते गुलमोहर निराश हृदय को आस दिलाते गुलमोहर खिलते रहो उदासियों में भी जीवन्त रहो नीरवता में...
-
खिड़कियों से झाँककर संसार निहारें हम ऐसा हमारे बड़ों ने संसार सौंपा है। अपनी भोगलिप्सा से पञ्चतत्त्व प्रदूषित कर हमें चुनौति...
2 comments:
बहुत अच्छी कविता है ।
धन्यवाद
आपकी कविताये अच्छी और संवेदनशील है । पढ़कर कुछ नया पा जाने का अहसास हुआ । आपकी कविता-- जब मैं आने को कहती हूँ
तब.....तुम क्यों सहम जाते हो?-- में हल्की सी चुभन उठ ही जाती है कि कैसा भाग्य कि हम ऐसे समाज का अंग है जहाँ "वह आने को कहती है
तब.....लोग सहम जाते है" भगवान करे आपका ये ब्लोग पढ़कर किसी एक का भी ज़मीर जाग जाये ........ बस भगवान करे.....
Post a Comment