Wednesday, February 16, 2011

ऋतुराज वसन्त

33 comments:

Arvind Mishra said...

कामदेव का आह्वान है तो यह ! हे भगवान् अब क्या होगा ? :) शिव शिव !
पांच पुष्प बाण जिनमें एक आम की मंजरियाँ दिखने भी लगीं ..

ममता त्रिपाठी said...

धन्यवाद मिश्र जी!

आम्रमञ्जरियाँ तो आगमन की सूचक हैं

बाण तो पाँच ही हैं।

रंजना said...

बासंती छटा bikhertee बहुत hee सुन्दर panktiyan ...

Udan Tashtari said...

सुन्दर पंक्तियाँ..

Shikha Kaushik said...

bahut sundar .man ko moh liya aapki panktiyon ne .shubhkamnayen.

Crazy Codes said...

bahut khub... laajawaab shabd..

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

ममता त्रिपाठी जी
सस्नेहाभिवादन !

ॠतुराज बसंत के स्वागतार्थ अत्यंत मनोरम प्रस्तुति के लिए आभार !
भ्रमर कर रहे हर डाली पर बासंती गुणगान !
वंदन है, अभिनंदन है, कामदेव के तीर कमान !


कुछ पद और सृजित हुए होते तो आनन्दवृद्धि होती ।

नेट स्पीड की समस्या के कारण
दो दिन विलंब से ही …
प्रणय दिवस की मंगलकामनाएं ! :)

♥ प्रेम बिना निस्सार है यह सारा संसार !

# आमंत्रण :
मेरी इस पोस्ट पर पहुंचें न पहुंचें , अगली पोस्ट पर अवश्य पधारें ,
बासंती रस रंग की अनुभूति के लिए …

बसंत ॠतु की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार

डॉ. मोनिका शर्मा said...

सुंदर वासंतिक रचना....

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

वाह....बहुत अच्छा आह्वान....

Mukesh said...

कामदेव का आह्वान्............

हाँ वसन्त है न?

देखना कहीं अपने सभी शरों को लेकर आ न जायें।


सुन्दर रचना

अहो भाग्य!
इस कविता में संक्षिप्तता तो दिखाई।

Minakshi Pant said...

बहुत खुबसूरत रचना |

कविता रावत said...

Bahut badiya baasatimayee rachna... chhoti rachna magar saarthakta liye..

Anonymous said...

बहुत सुंदर ब्लॉग

आनंद said...

वसंत आगमन पर सराहनीय कविता ममता जी ...साधुवाद!

आनंद said...

वसंत आगमन पर सराहनीय कविता ममता जी ...साधुवाद!

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

बासंती रंग में सराबोर रचना....
तीर-कमान ....क्या kahna !

Kunwar Kusumesh said...

कामदेव के तीर कमान का प्रयोग बहुत प्यारा लगा आपकी कविता में.

Akhilesh pal blog said...

bahoot sundar rachana mamata ji

शिक्षामित्र said...

वसंत का हम भी मज़ा लेना चाहते हैं पर मौसम की अटखेलियां जारी हैं।

देवेन्द्र पाण्डेय said...

बेहद खूबसूरत पंक्तियाँ हैं। मुझे पिछले साल लिखे अपने ही गीत की पंक्तियाँ याद हो आईं...

कलियन में मधुप मगन
गलियन में पवन मदन

भोरिए में दुखे पोर-पोर
आयो रे बसंत चहुँ ओर.

..लिंक http://devendra-bechainaatma.blogspot.com/2010/01/blog-post_31.html

Er. सत्यम शिवम said...

आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (19.02.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.uchcharan.com/
चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)

Anupama Tripathi said...

बसंत सी -बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ -
बधाई .

केवल राम said...

ममता त्रिपाठी जी
आपकी रचना बेहद सराहनीय है ...

अजय कुमार said...

बसंत की पूरी मस्ती

धीरेन्द्र सिंह said...

चार पंक्ति में गया सिमट ऋतुराज वसंत का गान, मन की कोयल करे शिकायत छोटा सा क्यों उद्यान.

Dr (Miss) Sharad Singh said...

बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना ! शुभकामनायें ।

Patali-The-Village said...

वसंत आगमन पर सराहनीय कविता|

संतोष पाण्डेय said...

मर्मस्पर्शी प्रस्तुति.बधाई.

sumeet "satya" said...

सुंदर वासंतिक रचना

Anonymous said...

bahut sundar

विनोद कुमार पांडेय said...

बसंत ऋतु का संक्षिप्त किंतु अति सुंदर वर्णन...शुभकामनाएँ

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

ममता त्रिपाठी जी
नमस्कार !

*आमंत्रण*
आपकी प्रतीक्षा है शस्वरं पर

प्यारो न्यारो ये बसंत है !

बसंत ॠतु की बधाई और मंगलकामनाओं सहित …
- राजेन्द्र स्वर्णकार

Dinesh pareek said...

आप की बहुत अच्छी प्रस्तुति. के लिए आपका बहुत बहुत आभार आपको ......... अनेकानेक शुभकामनायें.
मेरे ब्लॉग पर आने एवं अपना बहुमूल्य कमेन्ट देने के लिए धन्यवाद , ऐसे ही आशीर्वाद देते रहें
दिनेश पारीक
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/
http://vangaydinesh.blogspot.com/2011/04/blog-post_26.html

यथार्थ

रिश्ते-नाते, जान-पहचान औ हालचाल सब जुड़े टके से। टका नहीं यदि जेब में तो रहते सभी कटे-कटे से।। मधुमक्खी भी वहीं मँडराती मकरन्द जहाँ वह पाती ...