
Wednesday, February 16, 2011
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यथार्थ
रिश्ते-नाते, जान-पहचान औ हालचाल सब जुड़े टके से। टका नहीं यदि जेब में तो रहते सभी कटे-कटे से।। मधुमक्खी भी वहीं मँडराती मकरन्द जहाँ वह पाती ...
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माँ-बाप का दुत्कारत हैं औ कूकुर-बिलार दुलारत हैं यहि मेर पुतवै पुरखन का नरक से तारत है ड्यौढ़ी दरकावत औ ढबरी बुतावत है देखौ कुलदीपकऊ ...
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रिश्ते-नाते, जान-पहचान औ हालचाल सब जुड़े टके से। टका नहीं यदि जेब में तो रहते सभी कटे-कटे से।। मधुमक्खी भी वहीं मँडराती मकरन्द जहाँ वह पाती ...
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खिड़कियों से झाँककर संसार निहारें हम ऐसा हमारे बड़ों ने संसार सौंपा है। अपनी भोगलिप्सा से पञ्चतत्त्व प्रदूषित कर हमें चुनौति...
33 comments:
कामदेव का आह्वान है तो यह ! हे भगवान् अब क्या होगा ? :) शिव शिव !
पांच पुष्प बाण जिनमें एक आम की मंजरियाँ दिखने भी लगीं ..
धन्यवाद मिश्र जी!
आम्रमञ्जरियाँ तो आगमन की सूचक हैं
बाण तो पाँच ही हैं।
बासंती छटा bikhertee बहुत hee सुन्दर panktiyan ...
सुन्दर पंक्तियाँ..
bahut sundar .man ko moh liya aapki panktiyon ne .shubhkamnayen.
bahut khub... laajawaab shabd..
ममता त्रिपाठी जी
सस्नेहाभिवादन !
ॠतुराज बसंत के स्वागतार्थ अत्यंत मनोरम प्रस्तुति के लिए आभार !
भ्रमर कर रहे हर डाली पर बासंती गुणगान !
वंदन है, अभिनंदन है, कामदेव के तीर कमान !
कुछ पद और सृजित हुए होते तो आनन्दवृद्धि होती ।
नेट स्पीड की समस्या के कारण
दो दिन विलंब से ही …
♥ प्रणय दिवस की मंगलकामनाएं ! :)
♥ प्रेम बिना निस्सार है यह सारा संसार !
# आमंत्रण :
मेरी इस पोस्ट पर पहुंचें न पहुंचें , अगली पोस्ट पर अवश्य पधारें ,
बासंती रस रंग की अनुभूति के लिए …
बसंत ॠतु की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
सुंदर वासंतिक रचना....
वाह....बहुत अच्छा आह्वान....
कामदेव का आह्वान्............
हाँ वसन्त है न?
देखना कहीं अपने सभी शरों को लेकर आ न जायें।
सुन्दर रचना
अहो भाग्य!
इस कविता में संक्षिप्तता तो दिखाई।
बहुत खुबसूरत रचना |
Bahut badiya baasatimayee rachna... chhoti rachna magar saarthakta liye..
बहुत सुंदर ब्लॉग
वसंत आगमन पर सराहनीय कविता ममता जी ...साधुवाद!
वसंत आगमन पर सराहनीय कविता ममता जी ...साधुवाद!
बासंती रंग में सराबोर रचना....
तीर-कमान ....क्या kahna !
कामदेव के तीर कमान का प्रयोग बहुत प्यारा लगा आपकी कविता में.
bahoot sundar rachana mamata ji
वसंत का हम भी मज़ा लेना चाहते हैं पर मौसम की अटखेलियां जारी हैं।
बेहद खूबसूरत पंक्तियाँ हैं। मुझे पिछले साल लिखे अपने ही गीत की पंक्तियाँ याद हो आईं...
कलियन में मधुप मगन
गलियन में पवन मदन
भोरिए में दुखे पोर-पोर
आयो रे बसंत चहुँ ओर.
..लिंक http://devendra-bechainaatma.blogspot.com/2010/01/blog-post_31.html
आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (19.02.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.uchcharan.com/
चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
बसंत सी -बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ -
बधाई .
ममता त्रिपाठी जी
आपकी रचना बेहद सराहनीय है ...
बसंत की पूरी मस्ती
चार पंक्ति में गया सिमट ऋतुराज वसंत का गान, मन की कोयल करे शिकायत छोटा सा क्यों उद्यान.
बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना ! शुभकामनायें ।
वसंत आगमन पर सराहनीय कविता|
मर्मस्पर्शी प्रस्तुति.बधाई.
सुंदर वासंतिक रचना
bahut sundar
बसंत ऋतु का संक्षिप्त किंतु अति सुंदर वर्णन...शुभकामनाएँ
ममता त्रिपाठी जी
नमस्कार !
*आमंत्रण*
आपकी प्रतीक्षा है शस्वरं पर
♥ प्यारो न्यारो ये बसंत है ! ♥
बसंत ॠतु की बधाई और मंगलकामनाओं सहित …
- राजेन्द्र स्वर्णकार
आप की बहुत अच्छी प्रस्तुति. के लिए आपका बहुत बहुत आभार आपको ......... अनेकानेक शुभकामनायें.
मेरे ब्लॉग पर आने एवं अपना बहुमूल्य कमेन्ट देने के लिए धन्यवाद , ऐसे ही आशीर्वाद देते रहें
दिनेश पारीक
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/
http://vangaydinesh.blogspot.com/2011/04/blog-post_26.html
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