शोभित साहित्य क्षितिज पर हिन्दी का अनुपम ’दिनकर’।
जिसके ओजस्वी वाणी से जागे वीर शिंजिनी कसकर॥
कर परशुराम की प्रतीक्षा, रश्मिरथी की रश्मि बिखेरी ।
छायी थी प्राची-क्षितिज पर आततायी निशा घनेरी ॥
जागृति को परिभाषित कर जगती में जागृति-बोध भरा।
विश्वासों की शिला बनायी, चट्टाओं सा जोश भरा ।।
स्वतन्त्रता की प्रथम विभा ला ड्योढ़ी पर आसीन किया ।
सामधेनी के स्वर सजाकर देश को स्वाधीन किया ॥
4 comments:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज मंगलवार (24-09-2013) मंगलवारीय चर्चा--1378--एक सही एक करोड़ गलत पर भारी होता है|
में "मयंक का कोना" पर भी है!
हिन्दी पखवाड़े की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
अद्भुत पंक्तियाँ ..... उन्हें सादर नमन
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ है .. उन्हें सादर नमन
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सुन्दर प्रस्तुति । ’दिनकर’जी को सादर नमन |
मेरी रचना :- चलो अवध का धाम
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