सावन आया
फुहारें पड़ीं
भादों भी आ गया
पर ये क्या परिन्दे को
भनक तक न लगी
वे मानसर के पार तक न गये
राहत की उन्हें कुछ आस थी
अन्त तक आस लगाये रहे
पर जान न पाये सावन की आहट
क्योंकि उसकी पहचान
उसकी सारथी
उसकी सखी
बड़ी देर से आई।
आखिर परिन्दों के पास
हम सा कैलेण्डर नही होता।
2 comments:
बहुत सुन्दर...
बहुत सुन्दर...
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