Friday, July 31, 2009

परिन्दे की यात्रा

सावन आया

फुहारें पड़ीं

भादों भी आ गया

पर ये क्या परिन्दे को

भनक तक न लगी

वे मानसर के पार तक न गये

राहत की उन्हें कुछ आस थी

अन्त तक आस लगाये रहे

पर जान न पाये सावन की आहट

क्योंकि उसकी पहचान

उसकी सारथी

उसकी सखी

बड़ी देर से आई।

आखिर परिन्दों के पास

हम सा कैलेण्डर नही होता।

2 comments:

Mukesh said...

बहुत सुन्दर...

Mukesh said...

बहुत सुन्दर...

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